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स्टार्टअप की अनोखी पहल / मुफ्त में सीखो कोडिंग, नौकरी मिलने के बाद भरो फीस सिर्…

स्टार्टअप की अनोखी पहल / मुफ्त में सीखो कोडिंग, नौकरी मिलने के बाद भरो फीस
सिर्फ 3 से 9 महीने के Course के बाद 5 लाख सालाना से बढ़कर 25-30 लाख रुपए हो जाती है कैंडीडेट्स की सैलरी

देश में ऐसे नए स्टार्टअप शुरू हुए हैं जो युवाओं को बेहतर सैलरी वाली नौकरी पाने में मदद कर रहे हैं। Income & sharing Agreement (ISA) स्टार्टअप अमेरिका और यूरोप में प्रचलन में हैं, लेकिन भारत में इनकी शुरुआत हो रही हैं। इनका कॉन्सेप्ट बेहद सरल है- इन स्टार्टअप के किसी भी रि-स्किलिंग कोर्स में दाखिला लीजिए और बेहतर नौकरी लगने के बाद अपनी फीस चुकाइए। खास बात तो यह है कि अगर आपकी नौकरी नहीं लगती है तो आपको कोई फीस नहीं देनी होगी।
कई छात्रों को हुआ फायदा
Times of India में छपी खबर के मुताबिक तमिलनाडु के 25 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र धरनीधरन पिछले साल अपनी डिग्री पूरी होने के बाद फ्रीलांसिंग के जरिए सालाना 5-6 लाख रुपए कमा रहे थे। अब वे अमेरिका बेस्ड स्टार्टअप के लिए काम करते हैं और उनकी सैलरी सालाना 32 लाख रुपए हैं। यह उनकी पिछली आय से 5 गुना अधिक है। उन्होंने पिछले साल Pesto नामक ISA स्टार्टअप के बारे में सुना। इसके बाद स्टार्टअप के बारे में सारी जानकारी हासिल करने के बाद तीन महीने के कोर्स में दाखिला लिया। इस कोर्स के दाैरान उनसे कोई फीस नहीं ली गई। नौकरी लगने के बाद वे कोर्स की फीस चुका रहे हैं। धनीधरन के जैसे कई और भी छात्र हैं जिन्होंने ऐसे ही स्टार्टअप के कोर्स में दाखिला लिया और अब वे पहले से कई गुना ज्यादा सैलरी वाली नौकरी कर रहे हैं।

ऐसे काम करते हैं ये स्टार्टअप
किसी कैंडीडेट को इन स्टार्टअप का कोई रि-स्किलिंग कोर्स चुनना होता है। अगर कैंडीडेट का सिलेक्शन होता है तो उसे 3 से 9 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद अगर कैंडीडेट की नौकरी लग जाती है तो अगले 2-3 साल तक उसे अपनी सैलरी में से तकरीबन 17 फीसदी कोर्स की फीस के रूप में चुकाना पड़ता है। अगर कैंडीडेट की नौकरी नहीं लगती है तो उसे कोई फीस नहीं देनी होती है। हालांकि ज्यादातर कैंडीडेट्स को अच्छी नौकरी मिल जाती है, जिसमें सैलरी हाइक 5 गुना तक होता है। बेहतर परिणामों के चलते अब हजारों की संख्या में छात्र इन स्टार्टअप के काेर्स में दाखिला ले रहे हैं।

बनता है कॉन्ट्रैक्ट
अगर कोई छात्र बीच में ही कोर्स छोड़कर चला जाए या नौकरी लगने के बाद फीस चुकाने से मना कर दे, तो उसके खिलाफ कार्रवाई भी होती है। ये स्टार्टअप छात्रों को दाखिला देने से पहले उनके साथ एक फॉर्मल कॉन्ट्रैक्ट साइन करते हैं, जिसमें नौकरी देने वाली कंपनियां और नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियां (NBFC) भी शामिल होती हैं। इस कॉन्ट्रैक्ट में लिखा जाता है कि छात्र ने NBFC या नौकरी देने वाली कंपनी से लोन लिया है। अगर उसे नौकरी नहीं मिलती है, तो यह लोन कैंसिल हो जाएगा। अगर नौकरी मिलती है, तो उसे 17 फीसदी के हिसाब से तय समय के लिए फीस चुकानी होगी। अगर कोई छात्र बीच में ही कोर्स छोड़ देता है, लेकिन अगले कुछ महीनों में उसकी नौकरी लग जाती है, तो भी कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक उसे तय समय के लिए 17 फीसदी सैलरी स्टार्टअप को देनी होगी।

बड़ी कंपनियों की नजर ऐसे स्टार्टअप पर
इन स्टार्टअप की सफलता से प्रभावित होकर अमेजन, फ्लिपकार्ट, उबर समेत कई प्रमुख टेक कंपनियां इन पर दांव लगाने को तैयार हैं। ये कंपनियां इन प्रोग्राम्स में से सबसे बेहतर टैलेंट को अपनी टीम में शामिल करने के लिए पैसा तक देने को तैयार हैं। कई कंपनियां अपने आईटी एक्जीक्यूटिव्स को ऐसे प्रोग्राम में दाखिला लेने को प्रोत्साहित कर रही हैं। KPMG India के पार्टनर एंड हेड (एजुकेशन), नारायणन रामास्वामी के मुताबिक अब ट्रेड हायर-एंड-ट्रेन से बदलकर ट्रेन-एंड-हायर हो गया है। यानी पहले लोगों को भर्ती करके उन्हें ट्रेनिंग दी जाती थी, जबकि अब पहले से ट्रेनिंग लिए हुए उम्मीदवारों को नौकरी दी जाती है। ऐसे में इस तरह के स्टार्टअप की मांग और बढ़ेगी और इसमें इंजीनियरिंग के अलावा और भी कोर्स शामिल किए जाएंगे।


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